14/01/2009

जीवन के मायने क्या?

बड़ी उदास सी सुबह और बोझिल सा दिन है....एक सा कम और एक से जीवन से ऊब का दौर है.....फिर से सवालों ने सिर उठाये है.... हर दिन आता है और निकल जाता है... रात खाली हो जाती है.... मशीन से जीते हुए संवदेनाओं के सिरे भी थाम नहीं पाते है.... काम करना....खाना-सोना..... घूमना-फिरना.....खरीदना....मजे करना....पैसा कमाना... और खर्च करना.... क्या यही जीवन है? या जीवन का कोई और भी मकसद है....? यूँ कोई और मकसद नजर तो नहीं आता है.... फिर सवाल उठता है कि जीवन क्यों है...? हम क्या इसलिए जीते है कि हममे मरने की हिम्मत नहीं है? और यदि जीवन का कोई मतलब नहीं है तो फिर हमारे सुख-दुःख....नाकामयाबी और उपलब्धि.... खुशी या फिर दर्द क्या इनमें से क्या किसी का भी कोई मतलब नहीं है? तो फिर हम क्यों है....क्या हम स्रष्टि के संचालन के लिए मात्र मोहरे है...? तो हमारे अनुभव....अहसास.....रचना....कर्म....किसी का भी कोई मतलब नहीं है ? क्या वाकई दुनिया मिथ्या है...? और हमारे होने या ना होने का कोई मतलब.....मकसद नहीं है..... तो हम क्यों है...? बड़ी उलझन है.... उदासी और हताशा है. होने की निर्रथकता का गहरा अहसास.....बेबसी... होने और ना होना चाहने के बीच का निर्वात.....

7 comments:

  1. लगता है मैंने ही लिखा है...मेरे ही भाव हैं...बस शब्द आपके हैं...इसीलिए तो मन को छू रहा है

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  2. यह विचार श्रृंखलायें तो हर संवेदित मन की उपज हैं.
    अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद.

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  3. इन शाश्वत सवालों का जवाब ढूँढने में ही उम्र निकाल जाती है और आख़िर तक जवाब नहीं मिलता...उद्वेलित करते प्रश्न...
    नीरज

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  4. yahI jeevan hai sunder abhivykti hai to nirasha ka svaal hi nahi

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  5. ye chhatapatahat aapko sprituality ki taraf le jayegi

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  6. man ko chhoo liya aapke bhavon ne likhti rahiye yon hi hamesha.thanks

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