08/07/2009

नैनीताल पर शब्द-चित्र

मेरी कवितानुमा तुकबंदी को सराहने के लिए शुक्रिया.....इसे मैं हौसला अफजाई ही मान रही हूँ बिल्कुल ऐसे जैसे पहले-पहल स्कूल में सीखी कविता को सुनाते बच्चे का हौसला बढ़ाते घर आए मेहमान हो और उस पर तुर्रा यह है कि आपने एक कविता सुनी....सुनकर ताली बजाई तो सुनिए एक और कविता....। इस बार दो साल पहले सुबह-सुबह जब काठगोदाम से नैनी झील के किनारे पहुँचे तो जो कुछ देखा उसने खुद-ब-खुद शब्द चुन लिए और....जो बना वह सामने है....यहाँ जिक्र चिनारों को है, लेकिन चित्र नैनी झील का है...इसके लिए पाठक क्षमा करेंगे।
नैनीताल
कतारों में चिनार
या फिर
चिनारों की कतार
नैनी झील के उस पार
चीड़ों के पहाड़ में से
झाँकती है
जीवन की चाँदनी
आसमान के आँचल पर
धूप-बादल के खेल
अलमस्त होकर आते
बरसते और बिखरते बादल
हम मैदानियों के
लिए प्रकृति का
अनुपम चित्र बनाते..
क्या ये कविता है?

फिर सेः कविता लिख पाने का कोई मुगालता नहीं है, ये बस कभी यूँ ही भावना की उमड़न का नतीजा है।

8 comments:

  1. han han ye kavita hai
    balki sirf yahi kavita hai ...........
    kavita ki ye yatra
    chalti rahe............

    shubhkamnaayen !

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  2. आपने तो पूरा नैनीताल सामने ला दिया.

    धन्यवाद

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  3. चित्र ही नहीं शब्दचित्र भी बहुत शानदार है। बधाई स्वीकारें।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  4. Shahjada kalim8 July 2009 at 17:37

    Ein dinon gadya khand bhi kavita hai, to kavita manane main kya burai hai.

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  5. अति सुन्दर. पूरा नेनीताल ही उकेर दिया शब्दों में.

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  6. kavita kahte hua sankoch kyon?

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  7. नस्र की तरह नज़्म भी एक मुश्किल सिन्फ़ है और माशाल्लाह तुम्हारी नस्र सलीस व नफ़ीस होने के साथ उसमें ज़बान व बयान की रवानी भी है इसलिए मशवरा यही है कि नस्र की तरफ ही अपना ज़हन मर्कूज़ करें . और नज़्म से बारीक सा फ़ासला रखें . ये फ़ासला तुम्हारी परवाज़ को न रोकेगा , न टोकेगा ....
    रफ़ीक़ विसाल

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