16/03/2010
सृष्टि के गर्भाधान का उत्सव गुड़ी पड़वा
फागुन के गुजरते-गुजरते आसमान साफ हो जाता है, दिन का आँचल सुनहरा, शाम लंबी, सुरमई और रात जब बहुत उदार और उदात्त होकर उतरती है तो सिर पर तारों का थाल झिलमिलाने लगता है। होली आ धमकती है, चाहे इसे आप धर्म से जोड़े या अर्थ से... सारा मामला आखिरकार मौसम और मन पर आकर टिक जाता है। इन्हीं दिनों वसंत जैसे आसमान और जमीन के बीच होली के रंगों की दुकान सजाए बैठता है.... अपने आँगन में जब गहरी गुलाबी हो रही बोगनविलिया, पीले झूमर से लटकते अमलतास और सिंदूर-से दहकते पलाश को देखते हैं, तो लगता है कि प्रकृति गहरे-मादक रंगों से शृंगार कर हमारे मन को मौसम के साथ समरस करने में लगी हैं, न जाने कहाँ से ये अनुभूति आती है कि प्रकृति का सारा कार्य व्यापार हमें (इंसानों को) खुश करने के लिए होता है... (हम जानते हैं यह सही नहीं हैं, हमारे, सभ्यता से पहले से ही प्रकृति का यही रंग-रूप रहा होगा...).. और हम खुश हो जाते हैं।
हाँ तो वसंत का आना हमेशा ही मन को उमंग से भर देता है, पता नहीं क्या है, इस मौसम में कि पूरे मौसम में हम आनंद-सागर में खुद को तैरता हुआ महसूस करते हैं। तो फिर क्यों न हमें वसंत भाए? लेकिन इसका संबंध जीवन के दर्शन से भी है, पत्तों का गिरना और कोंपलों के फूटने से पुराने के अवसान और नए के आगमन का संदेश हमें जीवन का अर्थ समझाता है। पतझड़ के साथ ही बहार के आने के अपने गहरे अर्थ हैं। एक साथ पतझड़ और बहार के आने से हम जीवन का उत्सव मना रहे होते हैं, तब कहीं रंग होता है, कहीं उमंग, बस इसी मोड़ पर एक और साल गुजरता है। गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा के साथ एक नया साल वसंत के मौसम में नीम पर आईं भूरी-लाल-हरी कोंपलों की तरह बहुत सारी संभावनाओं की पिटारी लेकर हमारे घरों में आ धमकता है। जब वसंत अपने शबाब पर है तो फिर इतिहास और पुराण कैसे इस मधुमौसम से अलग हो सकते हैं।
पुराणों में खासतौर पर ब्रह्मपुराण, अर्थववेद और शतपथ ब्राह्मण में उल्लेख हैं कि गुड़ी पड़वा पर ब्रह्मा ने सृष्टि के सृजन की शुरुआत की थी। तो इस तरह हम गुड़ी पड़वा पर सृष्टि के गर्भाधान का उत्सव मनाते हैं। आखिरकार वसंत को नवजीवन के आरंभ के अतिरिक्त और किसी तरह से, कैसे मनाया जा सकता है? वसंत के संदेश को गुड़ी पड़वा की मान्यता से बेहतर और किसी भी तरह से भला परिभाषित किया जा सकता है?
तो नए साल के लिए आप सभी को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ....
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अपने आँगन में जब गहरी गुलाबी हो रही बोगनविलिया, पीले झूमर से लटकते अमलतास और सिंदूर-से दहकते पलाश को देखते हैं, तो लगता है कि प्रकृति गहरे-मादक रंगों से शृंगार कर हमारे मन को मौसम के साथ समरस करने में लगी हैं, न जाने कहाँ से ये अनुभूति आती है कि प्रकृति का सारा कार्य व्यापार हमें (इंसानों को) खुश करने के लिए होता है... तो नए साल के लिए आप को भी ढेर सारी शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteनये वर्ष की शुभकामनायें
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