साफ़-शफ्फ़ाफ़
कोरे-करारे सफ़ों की
नोटबुक-सी है उम्र
हर पन्ने पर
जिंदगी करती चलती है
हिसाब
सुख-दुख, झूठ-सच
सही-गलत, मान-अपमान
नैतिक-अनैतिक, सफलता-असफलता
और ना जाने किस-किसी चीज का
लिखती जाती है
सफ़ों-पर-सफ़े
करती जाती है खत्म
उम्र को जैसे
और भरी हुई नोटबुक
अख़्तियार कर लेती है
एक दिन
शक्ल रद्दी की...
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