तमाम दुनिया के विरोध और आलोचनाओं के बाद भी पश्चिम एशिया का लड़ाकू देश इस्रेइल गाजा पट्टी पर लगातार हमले कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बाद भी उसका अभियान जारी है.....इसे कहते है शेरदिली.... आप चाहे कितना ही मानवीय हो लें यदि आपका विरोधी आपकी मानवता को नहीं समझता है तो आपकी सारी कसरत बेकार है...असल में इस्रेइल के गाजा पर हमले उस दौर में हो रहें है जब हमारा देश संकट के दौर से गुजर रहा है.... हम हताश है.... अविश्वास के शिकार है और स्वाभिमान की जरुरत के मारे है....इस निराशा से उबरने के लिए हमें नेता की जरुरत है और इसके लिए हम कोई भी कीमत देने के लिए तैयार है.... चाहे वो कीमत अपने मूल्यों के रूप में ही क्यों न चुकानी पड़ें। ये सही है की isreil बेवजह एशिया की पश्चिमी पट्टी को खून से रंग रहा है.... हमास के बहाने का खून बहा रहा है.... अमेरिका की सरपरस्ती में अपने क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन कर रहा है... और कोई मौका होता तो हम ( हम पर शायद सबको आपत्ति हो इसलिए मैं) भी इस तबाही का जमकर विरोध करते.... लेकिन आज ये लगता है कि काश हम भी ऐसा करते.....कर सकते.... अपनी लडाई को ख़ुद के बूते अंजाम पर पहुँचाने की कुव्वत हासिल कर पाते... हम पर हुए हमले का प्रतिकार बिना किसी के कंधे का सहारा लिए कर पाते.... काश इस बार हम भी इस्रेइल हो पाते....दरअसल यहाँ से हमारा असमंजस शुरू होता है....मानवीय मूल्यों और भावनाओं के बीच संघर्ष.....हिंसा हर हालत में अमानवीय है.... और गाजा पट्टी-इस्रेइल मामला हर सूरत में अमानवीय है.... लेकिन जब सवाल मुंबई पर आतंकवादी हमलों और इसके बाद हमारी सरकार द्वारा की गई और की जा रही कार्रवाही का हो तो हम अनायास ही भावना के क्षेत्र में चले जाते है...हमें लगता है कि हमें भी इस्रेइल की तरह ही प्रतिकार करना चाहिए.... करना होगा... आज इस्रेइल हमारा नायक.... क्योंकि उसके चारों तरफ़ से दुश्मनों से घिरे होने के बाद भी वह वही करता है.... जिसे वो ठीक समझता है.... जो उसके लिए ठीक है... और हम...? हम जो ठीक समझते है उसे तक क्रियान्वित नहीं कर पाते.....हमें लगता है कि हमें भी इस्रेइल की तरह ही प्रतिकार करना चाहिए.... करना होगा...
हम तो वो भी नही कर सकते है जिसे पुरी कहती है कि किया जाना चाहिए....हमें तो इसके लिए भी अमेरिका सहित पुरी दुनिया की सहमति की जरुरत होती है..... असल में हमें कृष्ण जैसे नेता की जरुरत है और गाँधी जैसे नायक की.... क्योंकि हम नायक की पूजा करते है और नेता का अनुसरण करतें है.... हमें कृष्ण होने की और गाँधी को सोचने की जरुरत है जबकि बदकिस्मती से गाँधी हमारे नेता है. मानवीय मूल्य हमारे जीवन के प्रदर्शक है... और भावना हमारी संचालक ...... ऐसा अक्सर होता है कि प्रदर्शक मूल्य हार जाते है और संचालक शक्ति जीत जाती है.... मेरे साथ तो ऐसा ही होता है और आपके.....?
bravo...?
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
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