आज रात कुछ अजीब सा अहसास हुआ.... गहरी नींद में कमरे में पायल की रुन-झुन सुनाई दी..नींद थोडी सी कुनमुनाई और फिर सो गई....थोडी देर बाद कहीं से प्रभाती के सुर कानों में पड़े....लगा कि आधी रात को कौन गा रहा है? फिर किसी ने प्यार से थपथपा कर जगाया....आखें खोली तो सिरहाने उजली-निखरी सुबह खड़ी मुस्कुरा रही थी....फिर सो नहीं पाई...बहुत देर तक उसकी उंगली पकड़े उसकी रुनझुन के साथ चलती रही....पता नहीं कब सुबह ने अपना आँचल धीरे से छुडा लिया...और मेरा हाथ जवान होती दोपहर के हाथ में दे दिया...पुरा दिन उसके साथ न जाने कहाँ-कहाँ की खाक छानी.....और मखमल सी सरकती शाम की गोद में आ गिरी....फिर.....फिर पता नहीं क्या हुआ...? अब पहेली क्यों बुझाऊ इन दिनों कुछ नशा सा छाया रहता है....हर दिन की शुरुआत गुलगुली गुलाबी सुबह के खिलखिलाने की आवाज से होती है...हवाओं से दिन भर खुशबु आती रहती है...दोपहर मीठी-मीठी और शाम मखमली लगती है...रात गुनगुनाती हुई आती है और लोरी सुना कर सुलाती है... मन न जाने क्यों उड़ता फिरता है....यूँ ही केलेंडर देखा और सारा-का-सारा माजरा समझ में आ गया....वसंत आ चुका है....मतलब हमें मालूम हो या न हो...प्रकृति हमें किसी भी तरह जता देती है.....कहती है कि ये मेरा यौवन का....श्रृंगार का मौसम है....प्रकृति अपने पुरे शबाब पर है....वह सभी कलाओं में ख़ुद को अभिव्यक्त कर रही है...सुबह से रात तक दिन कितने रूप-मुड़ और शेड बदलता है....आप गिन नहीं पाते है. हर दम फाग के सुर गूंजते रहते है....हवा छेड़छाड़ करती रहती है. हम शहरियों को तो पता भी नहीं होता है कि खेतों में सरसों के फूल खिल गए है...पलाश पर सिंदूर दहक रहा है...फिर भी यूँ लगता है कि कहीं कुछ तो खुबसूरत जरुर हो रहा है....चारों और रंग महक रहें है... मन मयूर हो रहा है....होली यूँ ही नहीं मनाई जाती है...जब सभी ओर रंग उड़ रहें हो, मन में यूँ तरंग का आलम हो...बिना कारण आल्हाद का अहसास हो....तो फिर रंगों का खेल नहीं होगा तो क्या होगा...? वसंत ओर फागुन की जोड़ी राग, रंग, आनंद ओर सृजन का मौसम है....वातानुकूलित घरों-दफ्तरों, मल्टीप्लेक्स और मॉल से निकल कर ठूठ हुए पेडों पर फूटती कोपलें....कहीं दूरदराज में कोई भूले हुए पलाश के दहकने को देखें....प्रकृति के सुन्दरतम रूप को निहारें....उसके सौन्दर्य से प्रेरणा लेकर सिरजे.....शायद यही वसंत और फागुन का उत्स है....सार और अर्थ है... वसंत शुभ...आनंदकारी...आल्हादकारी....और सृजनात्मक हो....वाग्देवी सरस्वती....बुद्धि...मेधा और कल्पना से समृद्ध करें.तो वसंत आप में और आप वसंत में महके...इसी आकांक्षा के साथ वसंत पंचमी की शुभकामना
28/01/2009
धूप का रंग है पीला...दिन हुआ सुनहरा...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छी अभिव्यक्ति। शब्दों का मनोहारी प्रयोग ।
ReplyDeleteआपको भी वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteअच्छा लिखा है...आपको भी वसंतपंचमी की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteभाव और विचार के श्रेष्ठ समन्वय से अभिव्यक्ति प्रखर हो गई है । विषय का विवेचन अच्छा किया है । भाषिक पक्ष भी बेहतर है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बसंत का क्या रूप बखान किया है आपने...वाह...शब्दों की जादूगरी अद्भुत है...वाह
ReplyDeleteनीरज
वाह क्या बात है.... आप भी वासंती शुभकामनाएं स्वीकारें..
ReplyDeleteakdam kavita.....vasanti..maja aa gaya.
ReplyDeleteakdam kavita.....vasanti..maja aa gaya.
ReplyDelete