18/10/2009

.....अवसाद के बीच



दीपावली गुजर गई...रात भर पटाखों के शोर के बीच दिनभर की थकान ने आँखों में नींद भर दी...और सुबह उठे तो उत्सव गुजर चुका था और गुजर चुका था उसका उत्साह.... अब थी छुट्टी....खाली बर्तन-सी बजती हुई....कोई योजना नहीं और कोई तैयारी नहीं....फूटे हुए पटाखों के कचरे से पटी पड़ी सूनी गलियाँ......उनींदा अलसाया दिन....बच्चे भी जैसे उत्सव के बाद के अवसाद के शिकार नजर आ रहे हैं.....।
अपने सिस्टम पर बैठी मैं कुछ लिखने का प्रयास कर रही हूँ और पीछे राजन-साजन मिश्र का तराना तन नादिर दिर दिन तन तेना तान.....चल रहा है। सोचती हूँ अवसाद का भी अपना आनंद है। कुछ ठंडा....कुछ मीठा....शांत-सा.....। उत्साह गुजर चुका है और बच गए हैं, कुछ सवाल। ज्वार के उतर जाने के बाद किनारे पर रह गए कचरे जैसा...कुछ...। हर साल दीपावली आती है और पूरे साल भर निर्लिप्त से होकर बिताने के बाद त्यौहार की तैयारियों में आकंठ डूब जाते हैं हम....। मन-मस्तिष्क को डूबो देते हैं, उस प्रवाह में जो हमारे आसपास से गुजर रहा है.....और हो जाते हैं उसका हिस्सा....फिर वह प्रवाह सबको अलग-अलग छोड़ देता है अपने-अपने अहसासों की नियति के साथ.....सामूहिकता गुम हो जाती है हम रह जाते हैं अपने पास.....निखालिस स्व के लिए...लेकिन क्या उसे सहना आसान है?
सवाल उठता है, कि इस सबका हासिल क्या है? इस एक दिन से क्या, कितना और कैसा बदलता है। अगले दिन से वही एहसास वहीं यांत्रिकता, वही एकांतता....यूँ तो आजकल हम उत्सव की सामूहिकता को भी नितांत एकांतिकता से मनाते हैं। हमारे अंदर बाहर इस आनंदोत्सव से क्या बदलता है? मात्र वक्ती तौर पर हम बदलता है फिर वही हो जाते हैं.....फिर इस बेकार के हल्ले का क्या मतलब है? कहीं कोई सुसंगति नहीं, कोई अर्थ ही नहीं..... जरूरत नहीं है कि क्या कि अब सोचा जाए कि हम त्यौहारों को तरतीब दें, विचार करें कि अपने आनंद को कोई आकार दें, अर्थ दें, खुद से बाहर जाकर देखें....जीएँ......जीने को आयाम दें, कुछ बदलने का विचार ही करें....क्या पता किसी दिन हम विचार को क्रिया में परिणित करने की स्थिति में ही आ जाए...। किसी भी नए और सद् विचार का स्वागत है, शायद ब्लॉगिंग ही बूँद भर बदलाव का माध्यम बन सके। इस उम्मीद के साथ सभी को बधाईयों के सैलाब में सार्थकता ढूँढने के लिए शुभकामना....ऑफकोर्स.....खुद मेरे लिए भी.....।
दीपावली और नए साल की हार्दिक-हार्दिक शुभकामना.....।

6 comments:

  1. amita ji.....aapne sahi kaha.....
    apsad ka apna hi maja hota hai...
    ab dekhiye na, kl divali thi or aaj subah-subah mera bloging ka hathiyar mujhse juda ho gay bt mai cafe me baitha hun......

    vaki iska bhi apna alag maja hai

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  2. Dr,shab
    सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
    जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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    ताऊ किसी दूसरे पर तोहमत नही लगाता-
    रामपुरियाजी
    हमारे सहवर्ती हिन्दी ब्लोग पर
    मुम्बई-टाईगर
    ताऊ की भुमिका का बेखुबी से निर्वाह कर रहे श्री पी.सी.रामपुरिया जी (मुदगल)
    जो किसी परिचय के मोहताज नही हैं,
    ने हमको एक छोटी सी बातचीत का समय दिया।
    दिपावली के शुभ अवसर पर आपको भी ताऊ से रुबरू करवाते हैं।
    पढना ना भूले। आज सुबह 4 बजे.
    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
    हेपी दिवाली मना रहा हू ताऊ के संग
    मै तो चला टाइगर भैया के वहा, ताऊजी के संग मनाने दिवाली- संपत
    ताऊ किसी दूसरे पर तोहमत नही लगाता-
    रामपुरियाजी

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  3. बहुत सही लिखा है...इस शोर मे सिर्फ हमारी सोच कुछ देर के लिए ठहर जाती है और हम उसी को खुशी मान लेते हैं....इस त्यौहार का असली मजा तो तब है जब इस त्यौहार के माध्यम से आपसी संबधो में प्रगाड़ता आए।
    दीपावली और नए साल की हार्दिक-हार्दिक शुभकामना.....।

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  4. har vo chij jo samuhikata se judi hai smrati de sakti hai ,khushi de sakti hai ...sukh nahin.

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  5. आपको भी दीपावली की शुभकामनाएँ.

    सही कहा..अवसाद की अपनी धुन होती है..अपना आनन्द होता है.

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  6. avsaad ke beech apr to comment baad mein , pahle kahna chahunga ki aapka parichay mughe is blog tak aakarshit kar laya. aapki saahityik creativity din dooni, raat chsugani badhe.
    sheb kaamnayen.

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